Saturday 14 November 2015

हाले-दिल को राज़ बनाकर दर्द बढ़ाया है मैनें.........

जुल्म बहुत है, कहाँ है ईश्वर, कब लेंगे अवतार बता
सारी दुनियाँ भाग रही है, तुम अपनी रफ़्तार बता।

हर रोज तरक्की होती है, अफ़सोस खज़ाना खाली है
किन हाथों से लुटता भारत जुड़ा कहाँ है तार बता।

हिज्र का मारा, शाख पे बैठे एक परिंदे से पूछा
प्यार के ज़ख्मी कुछ तो बोलो, पड़ी कहाँ है मार बता।

चारो तरफ एक कोलाहल है दहशत जैसा मंज़र है
बिना वजह के लाश बिछी है, कैसी है तलवार बता।

हाले-दिल को राज़ बनाकर दर्द बढ़ाया है मैनें
दिल की बातें रफ़्ता-रफ़्ता कर दूँ क्या इज़हार बता।

पानी का अम्बार लगा है मेघ बरसते जाते हैं
बाढ़ बहुत है, टूटी कश्ती, उतरूँ कैसे पार बता।

इस शहरे-जुदाई में मैनें अफ़सोस बहुत कुछ खोया है
सब धरती-अम्बर उसका है तो मेरा क्या है यार बता।

बेटा-बेटी पूरक हैं तो भेद यहाँ क्यों होता है
बेटा सोये बेटी रोये, ये कैसा अधिकार बता।

       -----------राजेश कुमार राय।----------