Saturday 28 February 2015

इस रंगे-सुख़न के मौसम में चल सारी अदावत भूलें हम.....

                        (1)
खेलो जितना खेल सको, बस नाजुक आँख बचा करके
ये होली मिलन की बेला है, कोई चूक कहीं ना हो जाये।

                       (2)
फागुन के नँशीले झोंकों में, और फिजाँ में चारो तरफ
बस पायल की झँनकारों का संगीत सुनायी देता है।

                       (3)
मौसम की खुमारी में प्यारे थोड़ा और नशा चढ़ जाने दे
तब दीवानी चुनरी में हम सातों रंग लगायेंगें।

                      (4)
पूछता हूँ हाल तो इतराते हैं ज़नाब
हाले-दिल बेकार है फागुन में पूछना।

                      (5)
तज़ल्ली है रूक्सार पे, चूड़ी है खँनकती
लगता है कि परदेश से दीवाना आ गया।

                      (6)
इस रंगे-सुखन के मौसम में चल सारी अदावत भूलें हम
क्या जानें कल हम न रहें या क्या जानें कल तुम न रहो।
..............राजेश कुमार राय.............

Friday 20 February 2015

मुसव्विर हूँ छोटा तसव्वुर बड़ा है........

मेरी वफा को छोड़ो अपनीं वफा को देखो
उसनें कहा था यही चलते-चलते।

क्या ज़वाब देता उस आख़िरी मिलन में
खामोंश रह गया था मैं हाथ मलते-मलते।

ऐसा मुझे लगा था मैं हो गया हूँ खाली
थोड़ा सा बस बचा था एहसास मरते-मरते।

मुख्तसर सी ज़िन्दगी को फिर से शुरू करो तुम
पैगाम ये दिया था सूरज नें ढ़लते-ढ़लते।

सब ठीक चल रहा था न जानें क्यूँ अचानक
महफ़िल में बुझ गयी थी एक शँम्मा जलते-जलते।

मेरी कोशिश यही थी न कुछ हो मगर
हादसा हो गया, हादसा टलते-टलते।

वो मेंरा नहीं था मगर मेंरे यारों
एक रिश्ता जवाँ हो गया पलते-पलते।

मुसव्विर हूँ छोटा तसव्वुर बड़ा है
इल्तज़ा है मरूँ तो ग़ज़ल कहते-कहते।

........राजेश कुमार राय.........

Monday 2 February 2015

"समन्दर"

हवाओं के सहारे से बहता है समन्दर
तूफानों के इशारे से उफनता है समन्दर
मुहब्बत है करता चाँद से कितना ये समन्दर
चाँद ये कहता है कि प्यारा है समन्दर।

लहरों को सुनों उनसे ये आवाज़ आती है
दुश्मन की चोट से कभी घायल नहीं होना
जिसको समझते हो कि पानी की भीड़ है
दुनियाँ में किसी से नहीं हारा है समन्दर।

मैकदे की शाम को जरा तुम गौर से देखो
लगता है जैसे शाँमे नजारा है समन्दर
नाचतीं हैं इस तरह से शराबों की बोतलें
जैसे किसी नें उसमें उतारा है समन्दर।

एक दुनियाँ ही दूसरी है समन्दर के पेट में
सूरज भी डूबता है समन्दर की बाँह में
शाँमों-सहर इस पर टहलतीं कश्तियाँ
इतिहास से पहले का नज़ारा है समन्दर।

समन्दर सा ज़लवा नहीं देखा है आज तक
राम नें भी उसको नमस्कार किया था
दुनियाँ की तरक्की राज़ उसके ज़हन में
इसलिए हम सब का दुलारा है समन्दर।

........राजेश कुमार राय।........