Saturday 18 June 2016

टूटने का वहम् पाल के बैठे हैं ये रक़ीब------

तेरी बद्दुआ भी द़िल से लगाऊँगा देखना
शाम ढ़ले घर तेरे आऊँगा देखना।

बेटी है मेरी, खून है, और लख़्ते-ज़िगर भी
उसके लिये हर बोझ उठाऊँगा देखना।

टूटने का वहम् पाल के बैठे हैं ये रक़ीब
मर जाऊँगा पर सर न झुकाऊँगा देखना।

तन्हा हुआ तो क्या हुआ ! इक मैकद़ा तो है
सारी दुआ साकी पे लुटाऊँगा देखना

तेरे लिये ऐ दोस्त जरूरी हुआ अगर
उस बेवफ़ा से हाथ मिलाऊँगा देखना।

हालांकि तेरी रूह मयस्सर न हो सकी
वादा किया था जो भी निभाऊँगा देखना।

दुश्मन है मेरा लाख, मगर वक्त पे "राजेश"
नशेमन मे लगी आग बुझाऊँगा देखना।

         ------राजेश कुमार राय।-------